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साउथ चाइना सी में बढ़ती गतिविधियाँ और भारत का अपने पड़ोसी देशों पर तेजी से घटता प्रभाव।


साउथ चाइना सी में बढ़ती गतिविधियाँ आज कल मीडिया की सुर्ख़ियों में छायी हुई हैं। समुद्री प्रावधानों को लेकर अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव से भारत की मीडिया प्रफुल्लित हो रही है, कि चीन के आक्रामकता को आख़िरकार टक्कर मिल रही है। इस बेवजह के उत्साह के माहौल में हम भारत की अपनी स्तिथि को पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर रहे हैं। हक़ीक़त यह है कि भारत का अपने पड़ोसी देशों पर प्रभाव तेज़ी से घटता जा रहा है, जिससे हमारी विदेश नीति पर कठिन सवाल उभर रहे हैं।

हाल ही में भारत के पुराने मित्र ईरान ने चीन के साथ अगले 25 वर्षों के लिए एक निवेश रोडमैप तैयार करते हुए 400 बिलियन डॉलर का समझौता किया है। परन्तु, इसी के साथ ईरान ने दो प्रमुख परियोजनाओं के लिए भारत के साथ अपने समझौते को समाप्त कर दिया है - चाबहार बंदरगाह की रेलवे परियोजना और फरज़ाद-बी ब्लॉक का विकास अब ईरान चाबहार बंदरगाह के दूसरे चरण के तहत रेलवे लाइन का निर्माण स्वयं करेगा। फरजाद-बी ब्लॉक को विकसित करने का कॉन्ट्रैक्ट पहले ओएनजीसी के पास था, पर काम धीमी प्रगति के कारण कॉन्ट्रैक्ट को अब ईरान की एक स्थानीय कंपनी को सौंपने की संभावना है। ईरान का यह निर्णय दो मज़बूत सहयोगियों के बीच बिगड़ते समन्धों का साफ़ संकेत है।

ईरान का यह निर्णय भारत के लिए बहुत बड़ी हार है। बंदरगाह का विकास ईरान के माध्यम से भारत के लिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया के अन्य देशों तक पहुँचने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन था। इस अवसर के माध्यम से भारत सेंट्रल एशिया के क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सकत था, जिससे भारत के आयात को बहुत फ़ायदा मिल पाता। जहाँ चीन लगभग 100 परियोजनाओं के साथ ईरान में अपनी जगह बनाने में अटल है, वहां हम तेज़ी से अपना वर्चस्व खोते जा रहे हैं।

यदि सरकार इस स्तिथि को सुधारने को लेकर गंभीर है, तो हमें हमारी विदेश नीति को बदलते विश्व के वास्तविक्तों के अनुसार ढालना होगा। हमारे पडोसी देशों से हमारे दशकों पुराने संबंधों को हम यूँ बिखरने नहीं दे सकते। इस मुद्दे को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर करते हुए मैंने माननीय प्रधान मंत्री जी को पत्र भी लिखा था, और उनसे निवेदन किया था की वे वास्तविक स्तिथि को देशहित में स्पष्ट करें। हमें जल्द और रणनीतिक रूप से कार्यवाही करने के आवश्यकता है ।
  



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